Aditya L1 Mission

आदित्य एल1: इसरो का पहला सूर्य मिशन सफलतापूर्वक अंतिम कक्षा में स्थापित हुआ

आदित्य-L1 स्पेसक्राफ्ट लैग्रेंज पॉइंट पर पहुंचा: 126 दिन में 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय की, यह सूर्य की स्टडी करेगा।

Aditya L1 Mission

Photo Credit:- ISRO (X)

इसरो का आदित्य -L1 स्पेसक्राफ्ट 126 दिनों में 15 लाख किमी की दूरी तय करने के बाद आज यानी 6 दिसंबर को सन-अर्थ लैग्रेंज पॉइंट 1 (L1) तक पहुंच गया है। पीएम मोदी ने आदित्य-L1 के हेलो ऑर्बिट में एंट्री करने की देशवासियों को बधाई देते हुए एक्स पर पोस्ट शेयर की है। ये मिशन 5 साल का होगा।

Aditya L1

Photo Credit:- Dr. Jitendra Singh(X)

स्पेसक्राफ्ट में 440N लिक्विड अपोजी मोटर (LAM) लगी है, जिसकी मदद से आदित्य -L1 को हेलो ऑर्बिट में पहुंचाया गया। यह मोटर इसरो के मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) में इस्तेमाल की गई मोटर के समान है। इसके अलावा आदित्य -L1 में आठ 22N भ्रस्टर और चार 10N भ्रस्टर हैं, जो इसके ओरिएंटेशन और ऑर्बिट को कंट्रोल करने के लिए जरूरी हैं।

L1 अंतरिक्ष में ऐसा स्थान है, जहां पृथ्वी और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्तियां संतुलित होती हैं। हालांकि, L1 तक पहुंचना और स्पेसक्राफ्ट को इस ऑर्बिट में बनाए रखना कठिन टास्क है। L1 का ऑर्बिटल पीरियड करीब 177.86 दिन है।

1. स्पेसक्राफ्ट की लॉन्चिंग

Aditya L1

Photo Credit:- ISRO (X)

आदित्य L1 को 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे PSLV-C57 के XL वर्जन रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था। लॉन्चिंग के 63 मिनट 19 सेकेंड बाद स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी की 235 Km x 19500 Km की कक्षा में स्थापित कर दिया था।

2. चार बार ऑर्बिट चेंज

• पहली बार इसरो के वैज्ञानिकों ने 3 सितंबर को आदित्य L1 की ऑर्बिट बढ़ाई थी। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 245 Km, जबकि सबसे ज्यादा दूरी 22,459 Km हो गई थी।

• 5 सितंबर को रात 2.45 बजे आदित्य L1 स्पेसक्रॉफ्ट की ऑर्बिट दूसरी बार बढ़ाई गई थी। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 282 Km, जबकि सबसे ज्यादा दूरी 40,225 Km हो गई।

• इसरो ने 10 सितंबर को रात करीब 2.30 बजे तीसरी बार आदित्य L1 की ऑर्बिट बढ़ाई थी। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 296 Km, जबकि सबसे ज्यादा दूरी 71,767 Km हो गई।

• इसरो ने 15 सितंबर को रात करीब 2:15 बजे चौथी बार आदित्य L1 की ऑर्बिट बढ़ाई थी। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 256 Km, जबकि सबसे ज्यादा दूरी 1,21,973 Km हो गई।

Aditya L1 Mission

Photo Credit:- ISRO(X)

3. ट्रांस-लैग्रेजियन इंसर्शन

आदित्य L1 स्पेसक्राफ्ट को 19 सितंबर को रात करीब 2 बजे ट्रांस-लैग्रेजियन पॉइंट 1 में पहुंचाया गया। इसके लिए यान के भ्रस्टर कुछ देर के लिए फायर किए गए थे। ट्रांस-लैग्रेजियन पॉइंट 1 इंसर्शन यानी यान को पृथ्वी की कक्षा से लैग्रेजियन पॉइंट 1 की तरफ भेजना।

4. L1 ऑर्बिट इंसर्शन

ट्रांस-लैग्रेजियन पॉइंट 1 इंसर्शन के बाद स्पेसक्राफ्ट को अपने पाथ पर बनाए रखने के लिए 6 अक्टूबर 2023 को ट्रैजेक्ट्री करेक्शन मेनोवर (टीसीएम) किया गया था। अब अंतिम चरण की प्रक्रिया होगी और स्पेसक्राफ्ट L1 ऑर्बिट के चक्कर लगाना शुरू कर देगा।

लैग्रेंज पॉइंट-1 (L1) क्या है?

  • लैग्रेंज पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच पॉइंट धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंस हो जाता है।

अगर इस जगह पर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है तो वह आसानी उस पॉइंट के चारों तरफ चक्कर लगाना शुरू कर देता है। पहला लैग्रेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। इस पॉइंट पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता।

स्पेसक्राफ्ट को L1 ऑर्बिट में बनाए रखना बड़ी चुनौती ये पॉइंट पूरी तरह से स्टेबल नहीं है, इसलिए आदित्य-L1 स्पेसक्राफ्ट को वहां बनाए रखने और वहां मौजूद दूसरे स्पेसक्राफ्ट्स से संभावित टकरावों से बचने के लिए लगातार मॉनिटरिंग करनी होगी। समय-समय पर भ्रस्टर्स की मदद से इसे अपनी पाथ पर रखा जाएगा।

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Photo Credit:- Narendra Modi (X)

एटीट्यूड एंड ऑर्बिट कंट्रोल सिस्टम (AOCS) स्पेसक्राफ्ट के ओरिएंटेशन और पोजीशन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रणाली में विभिन्न सेंसर, कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स और एक्चुएटर जैसे रिएक्शन व्हील्स, मैग्नेटिक टॉर्क और रिएक्शन कंट्रोल थ्रस्टर्स शामिल हैं। सेंसर सिस्टम में एक स्टार सेंसर, सन सेंसर, एक मैग्नेटोमीटर और जाइरोस्कोप शामिल हैं।

आदित्य-L1 जैसे मिशनों के लिए, एटीट्यूड और ऑर्बिट कंट्रोल में हाईएक्यूरेसी महत्वपूर्ण है। इसके लिए इसरो ने एक सॉफ्टवेयर डेवलप किया है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) की मदद से इसकी टेस्टिंग की गई है। वर्तमान में नासा के WIND, ACE, और DSCOVR जैसे स्पेसक्राफ्ट और ESA / नासा कोलाबोरेटिव मिशन SOHO भी L1 के आसपास तैनात हैं।

Halo Orbit

Photo Credit:- ISRO (X)

सूर्य की स्टडी करना जरूरी क्यों है?

जिस सोलर सिस्टम में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है। सभी आठ ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते हैं। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य से लगातार ऊर्जा बहती है। इन्हें हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं। सूर्य का अध्ययन करके ये समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले बदलाव अंतरिक्ष को और पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

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Photo Credit:- ISRO (X)

सूर्य दो तरह से एनर्जी रिलीज करता है:

• प्रकाश का सामान्य प्रवाह जो पृथ्वी को रोशन करता है और जीवन को संभव बनाता है।

सूर्य से चुंबकीय कणों (मैग्नेटिक पार्टिकल्स) का विस्फोट होता है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक चीजें खराब हो सकती हैं। इसे सोलर फ्लेयर कहा जाता है। जब ये फ्लेयर पृथ्वी तक पहुंचता है तो पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड हमें इससे बचाती है। अगर ये अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स से टकरा जाए तो ये खराब हो जाएंगी और पृथ्वी पर कम्युनिकेशन सिस्टम से लेकर अन्य चीजें ठप पड़ जाएंगी।

  • सबसे बड़ा सोलर फ्लेयर 1859 में पृथ्वी से टकराया था। इसे कैरिंगटन इवेंट कहते हैं।

तब टेलीग्राफ कम्युनिकेशन प्रभावित हुआ था। इसलिए इसरो सूर्य को समझना चाहता है। अगर वैज्ञानिकों के पास सोलर फ्लेयर की ज्यादा समझ होगी तो इससे निपटने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।

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